संपत्ति देख उड़ जाएंगे होश! कानपुर के कानूनगो को योगी सरकार ने डिमोट कर लेखपाल बनाया

कानपुर
उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले में राजस्व विभाग के एक अधिकारी आलोक दुबे के खिलाफ बड़ी लापरवाही और भ्रष्टाचार का मामला सामने आया है। आमतौर पर कानूनगो पद पर काम करने वाले अधिकारी की सैलरी कम होती है और जीवन साधारण होता है, लेकिन जांच में पता चला कि आलोक दुबे करोड़ों की संपत्ति का मालिक निकला। योगी सरकार ने इस मामले में कड़ी कार्रवाई करते हुए उसे कानूनगो पद से डिमोट कर लेखपाल बना दिया और उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज कर दिया है।
कैसे हुआ करोड़पति कानूनगो का खुलासा?
मिली जानकारी के मुताबिक, आलोक दुबे का नाम लंबे समय से कानपुर के जमीन कारोबार में विवादित जमीनों पर वारासत और बैनामा करने के मामले में सुर्खियों में था। शिकायतें मिलीं कि वह गैरकानूनी तरीके से जमीनों पर कब्जा कर रहा है। इस मामले में प्रशासन ने तुरंत जांच के आदेश दिए। एडीएम (न्यायिक), एसडीएम सदर और एसीपी कोतवाली की संयुक्त टीम ने जांच की तो पाया कि दुबे ने कानूनी रोक लगे हुए जमीनों पर फर्जी वारासत और बैनामा कर दिया था। इन जमीनों में से एक जमीन को एक निजी कंपनी को भी बेच दिया गया था, जिससे भ्रष्टाचार का खेल सामने आया।
50 करोड़ से ज्यादा की संपत्ति का मालिक
जांच रिपोर्ट में सामने आया कि आलोक दुबे, उसकी पत्नी और बच्चों के नाम कानपुर, दिल्ली और नोएडा में करीब 50 करोड़ रुपए से ज्यादा की संपत्तियां हैं। विभागीय अधिकारियों का कहना है कि यह संख्या और भी ज्यादा हो सकती है। दुबे ने रिंग रोड परियोजना की जानकारी मिलने के बाद इलाके में बड़े पैमाने पर जमीन खरीद-फरोख्त की। अनुमान है कि उसने 56 संपत्तियों में निवेश किया है। सरकारी पद का दुरुपयोग कर उसने अपनी संपत्ति में भारी वृद्धि की।
विभागीय जांच और डिमोशन
मार्च 2025 में दुबे के खिलाफ कानपुर कोतवाली में मुकदमा दर्ज हुआ। विभागीय जांच में उसे चार गंभीर आरोपों में दोषी पाया गया। अगस्त 2025 में उसकी व्यक्तिगत सुनवाई भी हुई। जांच अधिकारी ने साफ कहा कि दुबे ने सरकारी नियमों का उल्लंघन करते हुए बिना अनुमति भूमि खरीदी और बेच दी। इसके बाद डीएम ने आदेश जारी कर उसे कानूनगो पद से घटाकर लेखपाल बना दिया। प्रशासन ने कहा कि अब भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
संदिग्ध साथियों की भी जांच जारी
जांच में दुबे के साथ काम करने वाले कुछ अन्य राजस्व कर्मियों की भूमिका भी संदिग्ध पाई गई है। विशेष रूप से क्षेत्रीय लेखपाल अरुणा द्विवेदी का नाम सामने आया है। प्रशासन ने कहा है कि उनकी संलिप्तता पाए जाने पर उन पर भी सख्त कार्रवाई होगी।
जनता का भरोसा और प्रशासन की सख्ती
डीएम ने कहा कि राजस्व विभाग से जुड़े अधिकारियों का काम जनता के अधिकार और जमीन की सुरक्षा से जुड़ा होता है। ऐसे भ्रष्ट अधिकारी जनता का विश्वास टूटने का कारण बनते हैं। योगी सरकार ने साफ कहा है कि जमीन माफिया और भ्रष्ट अधिकारियों पर कोई भी रियायत नहीं दी जाएगी।
जमीन माफिया के साथ सांठगांठ का आरोप
स्थानीय लोगों का कहना है कि आलोक दुबे सिर्फ सरकारी अधिकारी नहीं, बल्कि जमीन माफिया के लिए भी ‘सेटिंग मास्टर’ था। आरोप है कि वह माफिया को पहले से सूचना देता था कि कौन से इलाके में सड़क या रिंग रोड बन रही है, जिससे माफिया उस इलाके में जमीन खरीदकर भारी मुनाफा कमाते थे। बदले में दुबे को भी हिस्सा मिलता था।
कानूनगो और लेखपाल पद की जानकारी
राजस्व विभाग में लेखपाल सबसे निचले स्तर का अधिकारी होता है, जो ग्राम स्तर पर भूमि के रिकॉर्ड रखता है और छोटे विवाद सुलझाता है। वहीं कानूनगो लेखपालों की देखरेख करता है और उससे ऊपर का पद होता है। आलोक दुबे के डिमोशन से साफ संदेश गया है कि भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारी चाहे किसी भी पद पर हो, उसे बख्शा नहीं जाएगा।