द इनसाइडर्स: सूची में सुलेमानी सेटिंग, मिस्टर इंडिया बन मंत्री ने किया दुबई में हवाला और मामा की बीज परीक्षा
द इनसाइडर्स में इस बार पढ़िए बड़े पदों पर बैठे अफसरों की चुगली वाली आदतें

कुलदीप सिंगोरिया@9926510865
भोपाल | पिछले कुछ अंकों में हमने राज्य प्रशासनिक सेवा की सीरीज़ लिखी ..जिसमें हमने चुगली आधारित अर्थ व्यवस्था का जिक्र किया था । दरअसल, ये अर्थव्यवस्था के आयाम सिर्फ SAS तक सीमित नहीं है बल्कि पैरेलल इकोनॉमी (ब्लैक मनी) की तरह ये पूरे तंत्र में व्याप्त है। आदि काल से राज तंत्र में षड्यंत्र (छ यंत्र ) का उपयोग होता रहा है। सत गुणी विवेचना के अनुसार छ यंत्र हैं साम, दाम, दंड, भेद, माया व उपेक्षा। रजो गुणी विवेचनानुसार सन्धि, विग्रह यान, आसन द्वैध व संश्रय। तमोगुणी विवेचनानुसार मारण, जारण, उच्चाटन, सम्मोहन, कीलन व विध्वन्सन। पर किसी भी विवेचना में चुगली का कोई जिक्र नहीं है…लेकिन प्रशासन तंत्र इसके बिना चल नहीं पाता। इसलिए, इस सातवें यंत्र “चुगली” पर हम आज जुगाली करेंगे। इस चुगली का सात्विक नाम है फीडबैक। जी हां! जब अपने अधीनस्थों के अधीनस्थों से चुगली सुनना चाहते हैं तो उसे वर्बल फीडबैक कहते हैं। तंत्र में सभी को इस हुनर की कम या ज्यादा आदत होती है। छोटों की बात क्या करें बड़े आलाकमान ने भी डॉक्टर साहब की चुगली के लिए दो दो नुमाइंदे दिल्ली से पदस्थ कर दिए। डॉक्टर साहब चुगली से इतने परेशान हैं कि अब कोशिश में हैं कि चुगलखोरों की सेवानिवृत्ति हो ही जाय। (इसके लिए संगठन में चुगली की जा रही है)। पर देंखें की चुगली आधारित अर्थव्यवस्था एक्सटेंशन दिलवा पाती है या नहीं …। ये यक्ष प्रश्न है? तब तक पढ़िए द इनसाइडर्स के विशेष अंक में हमारी चुगलीदार रसभरी कथाएं…
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बड़े साहब और सुलेमानी शक्ति का जलवा
सूची या लिस्ट। यह दो शब्द मंत्रालय की सीढ़ियों से लेकर बड़े-बड़े अफसरों के कक्षों में बतकही के आम शब्द हैं। ये न हो तो गपशप अधूरी। इसे यूं भी समझ सकते हैं कि मंत्रालय में सूची या लिस्ट शब्द उतना आम है जितना कॉलेज के कैंटीन में ‘उधार’। लेकिन इस बार जो सूची आई, उसने अफसरों के दिमाग में बिजली की तरह करंट दौड़ा दिया। पिछले कुछ वक्त से डॉक्टर साहब बड़े साहब को टाइट कर रहे थे। सब समझ गए कि डॉक्टर साहब और बड़े साहब की पटरी बैठ नहीं रही। देरी की असली वजह ‘आंतरिक असहमति’ थी, लेकिन सूची आते ही पता चला कि सुलेमानी ताकत अभी भी सक्रिय है। दो नाम ऐसे थे जिनकी सिफारिश सुलेमानी ताकत ने की थी। यानी नौकरी से रिटायर, लेकिन सत्तासेवा में अब भी फिट। बड़े साहब के बैचमेट होने और प्रगाढ़ दोस्ती का ईनाम भी। वहीं, सूची में एक संजय को विदा कर दूसरे संजय को लाया गया। राज रूपी ईश को भी निकलवा दिया गया — सब समझ गए कि बड़े साहब को दिल्ली से अब भी नियमित रूप से आशीर्वाद मिल रहा है।
सूची दरअसल एक तरह से पावर प्वाइंट प्रेजेंटेशन थी —
“यह है हमारी पसंद, यह है हमारी पहुंच, और बाकी सब समझ लो!”
मेवा प्रेम में कलेक्टर की फजीहत
“खाया पिया कुछ नहीं, गिलास तोड़ा बारह आने का…” इस कहावत को जीवंत किया एक प्रमोटी आईएएस साहब ने। बड़े जतन से जिल्लेइलाही बने, लेकिन स्टाइल में कमी नहीं। गांव पहुंचे तो बोले, “हमारा सम्मान बना रहे!” पंचायत वेब सीरिज की तरह प्रधान जी ओर सचिव जी ने उनका पूरा ‘भोजन तिलक’ कर दिया। चाय में शक्कर इतनी कि गिलास में चम्मच खड़ी रहे। रसगुल्ले, समोसे, पूड़ी-सब्जी, लड्डू… लेकिन चरम तब आया जब 14 किलो काजू, किश्मिश और बादाम का बिल बना दिया। गांव वाले हैरान — “इतना मेवा खा गए, फिर भी पूड़ी सब्जी भी डकार ली? यह कौनसी नस्ल है?” सच्चाई क्या है, यह कलेक्टर साहब जानें। वैसे साहब के जिले में एक और पंचायत का कारनामा भी चहुंओर गूंज में है। 24 लीटर पेंट में 443 मजदूर और 215 मिस्त्री लगाए गए! शायद ग्रेट वॉल ऑफ चाइना की मरम्मत चल रही थी! वैसे, साहब जब पंचायत विभाग में थे, तब से उन्हें यहां के बेहतर माहौल की आदत है।
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मामा का फार्म कभी आउट ऑफ ऑर्डर नहीं होता
मामा जी का जोश कैमरे के सामने दोगुना हो जाता है। हाल ही में नकली बीज की खोज में एक खेत पर पहुंचे। किसान ने खुद बोला — “मामा जी, ये बीज तो मेरे घर का है!” लेकिन मामा जी ने बात को ऐसे अनसुना किया जैसे WhatsApp ग्रुप में “गुड मॉर्निंग” मैसेज। बीज कंपनियों पर बरस पड़े, अफसर हक्का-बक्का। जांच में निकला कि बीज न किसी कंपनी का था, न किसी दलाल का। तो अब कार्रवाई किस पर हो? इस पूरी घटना में दोष बस इतना था कि किसान के बीज पर ‘ब्रांड’ का ठप्पा नहीं था और मामा को शो चाहिए था।
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“काश, सब अपनी टंकी का पानी पिएं”
आजकल मंत्रालय से लेकर नगर निगम तक बोतलबंद पानी ही चलता है। बल्कि शहरों में पानी सप्लाई करने वाले नगर निगम की बैठकों तक में बोतलबंद पानी दिया जाता है। लेकिन एक पानी से जुड़े निगम के मुखिया ऐसे भी हैं जो जहां जाते हैं, वहां की टंकी का पानी ही पीते हैं। उनका सिद्धांत — “जहां की योजना देखनी हो, वहीं का पानी पीना चाहिए।” साहब कभी भी बिसलरी की बोतल नहीं खरीदते हैं। बल्कि अपनी बोतल लेकर जाते हैं और पानी टंकी से भरते हैं। इसी बहाने पानी की गुणवत्ता की भी जांच हो जाती है। हमने इनकी सादगी और ईमानदारी का किस्सा पहले भी द इनसाइडर्स में शेयर किया है।
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400 करोड़ दुबई का सफर — मिस्टर इंडिया स्टाइल
पैसे कहां से आए, कैसे गए — किसी को नहीं पता। लेकिन मनी मार्केट कह रहा है कि प्रदेश से 400 करोड़ रुपए हवाला से दुबई भेजे गए। नाम नहीं पता — क्योंकि भले ही पैसा दुबई पहुंच गया हो, लेकिन भेजने वाला अब भी ‘इनबिजिबल मैन’ है। सूत्र फुसफुसाते हैं —
“किसी बड़े मंत्री का पैसा था, इसलिए जांच भी ‘बंद लिफाफा’ मोड पर है।”
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मंत्री संकट में, टीम चुपचाप में
हजार करोड़ की रिश्वत के आरोपों से घिरी मंत्रीजी दिल्ली तक सफाई देने पहुंचीं। लेकिन जो अफसर उनके साये में रहते थे, वो दूर-दूर तक नजर नहीं आए। उनमें से एक साहब दो मंत्रियों को ‘राजनीतिक समाधि’ दिलवा चुके हैं। दूसरा अफसर फर्जी दिव्यांग सर्टिफिकेट वाले विवाद में है। उनकी इस टीम की खासियत यह है कि टीम के ज़्यादातर सदस्य पॉलीटेक्निक कॉलेज के पुरातन विद्यार्थी हैं। यही नहीं, ‘परिवहन विभाग की पुरानी टीम’ के भी खैरख्वाह रहे हैं। मंत्रीजी को समझना चाहिए — “जो नाव पार लगाते हैं, वही सबसे पहले कूदते भी हैं!”
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इंजीनियर साहब का गणित – 21 को बना दिया 257 करोड़
पानी से संबंधित एक दूसरे विभाग के ईएनसी साहब ने कमाल का लेखा-जोखा किया — 21 करोड़ को ‘257 करोड़’ बता दिया! मतलब आंकड़ों की ऐसी जादूगरी कि न अकाउंटेंट समझे, न ऑडिटर। बड़े साहब को भनक लगी तो बोले —“ये गणित का चमत्कार है या खजाने की भूतिया प्रविष्टि?” फिर क्या था — इंजीनियर साहब को गणित दोबारा सिखाने के आदेश हुए और शोकाज नोटिस थमा दिया गया।
और आखिर में …
कलेक्टरों का पेट भी मीटिंग से ज़्यादा खाने में भरता है,
मामा का गुस्सा कंपनी से ज़्यादा कैमरे पर निकलता है,
और इंजीनियर का गणित फाइलों में हेराफेरी की परिभाषा बन जाता है।
और इस सबके बीच, सुलेमानी ताकत आज भी कायम है।
न नौकरी में, न कुर्सी पर — फिर भी हर सूची में छवि चमकती है।