105 वर्षीय राधाकृष्ण सिंह शास्त्री नहीं रहे, पीएम मोदी भी कर चुके हैं सम्मानित

बैतूल 

बैतूल में आजाद हिंद फौज के सिपाही राधाकृष्ण (राधा किशन) सिंह शास्त्री का 105 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। उन्होंने सोमवार सुबह अंतिम सांस ली। राधाकृष्ण सिंह का जन्म 1 जनवरी 1920 को बर्मा (म्यांमार) के पेंगु जिले में हुआ था।
प्रधानमंत्री ने किया था सम्मानित

स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में आज़ाद हिंद फ़ौज की 75वीं वर्षगांठ पर दिल्ली में उन्हें सम्मानित किया था। जीवन के अंतिम दिनों तक वे ‘जय हिंद’ के नारे के साथ लोगों का अभिवादन करते थे और आजाद हिंद फौज की वर्दी जैसा सफेद पैंट-शर्ट पहनना उनकी आदत बन गई थी। उनके परिवार में दो बेटे और एक बेटी हैं।

नेताजी के साथ मोर्चे पर लड़ी लड़ाई

1943 में नेताजी सुभाषचंद्र बोस के बुलावे पर राधाकृष्ण सिंह ने आज़ाद हिंद फ़ौज जॉइन की थी। सिंगापुर में भर्ती होकर उन्होंने “चनमारी” नामक सैन्य प्रशिक्षण लिया और नेताजी के नेतृत्व में इम्फाल और कोहिमा मोर्चों पर अंग्रेजी सेना के खिलाफ लड़ाई लड़ी।

इस दौरान वे तीन महीने अंग्रेजों की जेल में भी रहे, जहाँ से क्रांतिकारी भोला भाई देसाई के प्रयासों से रिहा हुए। जापान के आत्मसमर्पण के बाद आज़ाद हिंद फ़ौज को पीछे हटना पड़ा और बर्मा छोड़ने से पहले नेताजी ने अपने सैनिकों से अंतिम मुलाकात की—उसी समूह में राधाकृष्ण भी शामिल थे।

भारत लौटकर संघर्षपूर्ण जीवन बिताया

आज़ादी के बाद उन्होंने करीब 20 साल बर्मा में संघर्षपूर्ण जीवन बिताया और अंततः लालबहादुर शास्त्री की प्रेरणा से भारत लौटे। भारत में शरणार्थी के रूप में उन्हें बैतूल जिले के पहाड़पुर गांव में 5 एकड़ भूमि दी गई। जीविका चलाने के लिए वे पाथाखेड़ा की कोयला खदान में मजदूर बने और वहीं से रिटायर हुए। उनके निधन के बाद जिले में शोक की लहर है। उनका अंतिम संस्कार मंगलवार को किया जाएगा।

 राधाकृष्ण सिंह ने बताए आजादी की लड़ाई के अनछुए संस्मरण 

आजाद हिंद फौज के सिपाही राधा कृष्ण सिंह शास्त्री ने भारत को आजादी दिलाने में अहम भूमिका निभाई ,जो आज बैतूल जिले के पहाड़पुर गांव में निवास कर रहे हैं। 105 साल की उम्र में आज भी वे सात्विक जीवन बीता रहे हैं। अधिक उम्र होने के कारण थोडा अस्वस्थ रहते हैं लेकिन आज भी अंग्रेजी हुकुमत के साथ हुए युद्ध काल की घटना पर उन्होंने कहा कि भारत देश को अंग्रेजों से आजादी दिलाने की इस लड़ाई में भारत मां के अनगिनत सपूतों ने अपने प्राणों की आहुति दी है। इसके बाद भारत स्वतंत्र हुआ है। क्रांतिकारियों के अदम्य साहस के कारण अंग्रेजो ने भारत को स्वतंत्र करने का निर्णय लिया। रामप्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाक उल्ला खां, भगतसिंह, राजगुरु, सुखदेव और सुभाषचंद्र बोस जैसे अनेक देश भक्त हुए है।

जिन्होंने अपना जीवन समर्पित किया। उल्लेखनीय है कि शास्त्री जी का जन्म 01जनवरी 1920 को बर्मा ब्रम्हदेश के चौतगा में हुआ था। राधाकृष्ण सिंह शास्त्री के सहयोगी और उनके साथ अनेक कार्यक्रमों के साक्षी रहे अंबादास सूने ने बताया कि शास्त्री जी ने सन 1943 में आजादी के लिए नेताजी सुभाष चंद्र बोस के आव्हान पर आजाद हिंद फौज में भर्ती होकर भारत को स्वतंत्र कराने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। देश के अधिकांश भारत वासी दक्षिण पूर्व एशियाई देशो में थे। स्वतंत्रता आंदोलन में उनका महत्वपूर्ण अविस्मरणीय योगदान रहा है। आजाद हिंद फौज की स्थापना रासबिहारी बोस ने की और नेताजी सुभाषचंद्र बोस को कमान सौंपी। सुभाषचंद्र बोस ने देश की स्वतंत्रता के लिए भारत वासियो का आव्हान किया , फलस्वरूप राधाकृष्ण सिंह और बडे भाई सीताराम, डीपी वर्मा के साथ अनेक भारतीय समुदाय के लोग आजाद हिंद फौज में भर्ती हुए। नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने नारा देते हुए कहा कि तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूंगा। देश के बाहर रहते हुए नेताजी ने स्वतंत्रता संग्राम के आंदोलन में अतुलनीय योगदान दिया।

लेकिन देश स्वतंत्र होने के बाद अनेक क्रांतिकारी और भारत मां के सपूतों को षडयंत्र पूर्वक भुलाने का प्रयास तत्कालीन सरकार ने किया।श्री शास्त्री ने बताया कि पोपा हिल की लड़ाई 11 दिन और 11 रात चली जिसमें सीताराम बड़े भाई मारे गए। आज देश स्वतंत्र है लेकिन जो सम्मान आजादी के बाद देश के महान सपूतों और नेताजी सुभाषचंद्र बोस को मिलना चाहिए था , वह सम्मान तत्कालीन सरकारों ने नहीं दिया। वर्तमान समय में केंद्र और राज्य शासन दोनों की तरफ से उन्हें पेंशन मिल रही है जिससे वह अपना गुजर बसर कर रहे है।

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